Aditya Hrudayam Sanskrit Pdf

Description: Aaditya Hridaya Stotram is a hymn in praise of Sun God. Its recitation ensures good health and obstacles free life. Aaditya Hridaya Stotram is a hymn in praise of Sun God. Its recitation ensures good health and obstacles free life. Apr 11, 2016  Aditya Hridayam stotra is one of the main mantras of Lord Surya. Rad and download full Aditya Hrudayam Stotram in Sanskrit.

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Shri Aditya Hridaya Stotra in Hindi – आदित्यहृदय स्तोत्र अर्थ सहित

Aditya Hrudayam In Hindi Pdf

  • ‘आदित्यहृदय स्तोत्र’
  1. Aditya Hrudayam mantra is a Vedic hymn recited by Agastya Muni to Lord Rama on the battlefield before Rama went for fighting with Ravana. Below is the Aditya Hridayam Stotra Lyrics in Devanagari script.
  2. Oct 25, 2018  The Aditya Hrudayam is so named because, according to the great commentator of the Ramayana, Sri Govindaraja, it is ‘The Prayer that pleases the Heart of Lord Aditya’ – Aditya Manah-Prasadakam Ityarthah.
  3. Aditya Hrudayam Stotra (आदित्य हृदय स्तोत्र) Aditya Hrudayam is the ultimate salutation to Lord Sun (also known as Lord Surya / Aditya, one of the main Gods in Navagraha – planetary deities), the savior of all living things on earth. In Sanskrit, Aditya refers to Lord Sun – son of Aditi and Hrudayam means Heart.
  4. Dec 01, 2018  Find the Aditya Hrudayam Stotra (1 to 30 verses), Lyrics in PDF & MP3 formats In Sanskrit, Aditya refers to Lord Sun – son of Aditi and Hrudayam means Heart. Aditya Hridaya Stotram is a hymn in praise of Sun God. Its recitation ensures good health and obstacles free life.
  5. Aditya Hridayam Stotram also known as Lord Surya Bhagawan Stotram – Sanskirt with English Lyrics. Aditya Hrudayam is composed by Agastya Maharishi. This is a stotra, which praises Sun god. Everything that is around us in the universe is within us as well.
  • विनियोग
  • ॐ अस्य आदित्य हृदयस्तोत्रस्यागस्त्यऋषिरनुष्टुपछन्दः, आदित्येहृदयभूतो
    भगवान ब्रह्मा देवता निरस्ताशेषविघ्नतया ब्रह्मविद्यासिद्धौ सर्वत्र जयसिद्धौ च विनियोगः।
  • ऋष्यादिन्यास
    ॐ अगस्त्यऋषये नमः, शिरसि। अनुष्टुपछन्दसे नमः, मुखे। आदित्यहृदयभूतब्रह्मदेवतायै नमः हृदि।
    ॐ बीजाय नमः, गुह्यो। रश्मिमते शक्तये नमः, पादयो। ॐ तत्सवितुरित्यादिगायत्रीकीलकाय नमः नाभौ।
  • करन्यास
    ॐ रश्मिमते अंगुष्ठाभ्यां नमः। ॐ समुद्यते तर्जनीभ्यां नमः।
    ॐ देवासुरनमस्कृताय मध्यमाभ्यां नमः। ॐ विवरवते अनामिकाभ्यां नमः।
    ॐ भास्कराय कनिष्ठिकाभ्यां नमः। ॐ भुवनेश्वराय करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः।
  • हृदयादि अंगन्यास
    ॐ रश्मिमते हृदयाय नमः। ॐ समुद्यते शिरसे स्वाहा। ॐ देवासुरनमस्कृताय शिखायै वषट्।
    ॐ विवस्वते कवचाय हुम्। ॐ भास्कराय नेत्रत्रयाय वौषट्। ॐ भुवनेश्वराय अस्त्राय फट्।
    इस प्रकार न्यास करके निम्नांकित मंत्र से भगवान सूर्य का ध्यान एवं नमस्कार करना चाहिए-
    ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ
  • आदित्यहृदय स्तोत्र
  • ततो युद्धपरिश्रान्तं समरे चिन्तया स्थितम्।
    रावणं चाग्रतो दृष्टवा युद्धाय समुपस्थितम्।।1।।
    दैवतैश्च समागम्य द्रष्टुमभ्यागतो रणम्।
    उपगम्याब्रवीद् राममगरत्यो भगवांस्तदा।।2।।
    उधर श्री रामचन्द्रजी युद्ध से थककर चिन्ता करते हुए रणभूमि में खड़े थे। इतने में रावण भी युद्ध के लिए उनके सामने उपस्थित हो गया। यह देख भगवान अगस्त्य मुनि, जो देवताओं के साथ युद्ध देखने के लिए आये थे, श्रीराम के पास जाकर बोले।
  • राम राम महाबाहो श्रृणु गुह्यं सनातनम्।
    येन सर्वानरीन् वत्स समरे विजयिष्यसे।।3।।
    ‘सबके हृदय में रमण करने वाले महाबाहो राम ! यह सनातन गोपनीय स्तोत्र सुनो। वत्स ! इसके जप से तुम युद्ध में अपने समस्त शत्रुओं पर विजय पा जाओगे।’
  • आदित्यहृदयं पुण्यं सर्वशत्रुविनाशनम्।
    जयावहं जपं नित्यमक्षयं परमं शिवम्।।4।।
    सर्वमंगलमांगल्यं सर्वपापप्रणाशनम्।
    चिन्ताशोकप्रशमनमायुर्वधैनमुत्तमम्।।5।।
    ‘इस गोपनीय स्तोत्र का नाम है ‘आदित्यहृदय’। यह परम पवित्र और सम्पूर्ण शत्रुओं का नाश करने वाला है। इसके जप से सदा विजय की प्राप्ति होती है। यह नित्य अक्ष्य और परम कल्याणमय स्तोत्र है। सम्पूर्ण मंगलों का भी मंगल है। इससे सब पापों का नाश हो जाता है। यह चिन्ता और शोक को मिटाने तथा आयु को बढ़ाने वाला उत्तम साधन है।’
  • रश्मिमन्तं समुद्यन्तं देवासुरनमस्कृतम्।
    पूजयस्व विवस्वन्तं भास्करं भुवनेश्वरम्।।6।।
    ‘भगवान सूर्य अपनी अनन्त किरणों से सुशोभित (रश्मिमान्) हैं। ये नित्य उदय होने वाले (समुद्यन्), देवता और असुरों से नमस्कृत, विवस्वान् नाम से प्रसिद्ध, प्रभा का विस्तार करने वाले (भास्कर) और संसार के स्वामी (भुवनेश्वर) हैं। तुम इनका (रश्मिमते नमः, समुद्यते नमः, देवासुरनमस्कताय नमः, विवस्वते नमः, भास्कराय नमः, भुवनेश्वराय नमः इन नाम मंत्रों के द्वारा) पूजन करो।’
  • सर्वदेवतामको ह्येष तेजस्वी रश्मिभावनः।
    एष देवासुरगणाँल्लोकान् पाति गभस्तिभिः।।7।।
    ‘सम्पूर्ण देवता इन्हीं के स्वरूप हैं। ये तेज की राशि तथा अपनी किरणों से जगत को सत्ता एवं स्फूर्ति प्रदान करने वाले हैं। ये ही अपनी रश्मियों का प्रसार करके देवता और असुरों सहित सम्पूर्ण लोकों का पालन करते हैं।’
  • एष ब्रह्मा च विष्णुश्च शिवः स्कन्दः प्रजापतिः।
    महेन्द्रो धनदः कालो यमः सोमो ह्यपां पतिः।।8।।
    पितरो वसवः साध्या अश्विनौ मरुतो मनुः।
    वायुर्वन्हिः प्रजाः प्राण ऋतुकर्ता प्रभाकरः।।9।।
    ‘ये ही ब्रह्मा, विष्णु, शिव, स्कन्द, प्रजापति, इन्द्र, कुबेर, काल, यम, चन्द्रमा, वरूण, पितर, वसु, साध्य, अश्विनीकुमार, मरुदगण, मनु, वायु, अग्नि, प्रजा, प्राण, ऋतुओं को प्रकट करने वाले तथा प्रभा के पुंज हैं।’
  • आदित्यः सविता सूर्यः खगः पूषा गर्भास्तिमान्।
    सुवर्णसदृशो भानुहिरण्यरेता दिवाकरः।।10।।
    हरिदश्वः सहस्रार्चिः सप्तसप्तिर्मरीचिमान्।
    तिमिरोन्मथनः शम्भूस्त्ष्टा मार्तण्डकोंऽशुमान्।।11।।
    हिरण्यगर्भः शिशिरस्तपनोऽहरकरो रविः।
    अग्निगर्भोऽदितेः पुत्रः शंखः शिशिरनाशनः।।12।।
    व्योमनाथस्तमोभेदी ऋम्यजुःसामपारगः।
    घनवृष्टिरपां मित्रो विन्ध्यवीथीप्लवंगमः।।13।।
    आतपी मण्डली मृत्युः पिंगलः सर्वतापनः।
    कविर्विश्वो महातेजा रक्तः सर्वभवोदभवः।।14।।
    नक्षत्रग्रहताराणामधिपो विश्वभावनः।
    तेजसामपि तेजस्वी द्वादशात्मन् नमोऽस्तु ते।।15।।
    ‘इन्हीं के नाम आदित्य (अदितिपुत्र), सविता (जगत को उत्पन्न करने वाले), सूर्य (सर्वव्यापक), खग (आकाश में विचरने वाले), पूषा (पोषण करने वाले), गभस्तिमान् (प्रकाशमान), सुर्वणसदृश, भानु (प्रकाशक), हिरण्यरेता (ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति के बीज), दिवाकर (रात्रि का अन्धकार दूर करके दिन का प्रकाश फैलाने वाले), हरिदश्व (दिशाओं में व्यापक अथवा हरे रंग के घोड़े वाले), सहस्रार्चि (हजारों किरणों से सुशोभित), तिमिरोन्मथन (अन्धकार का नाश करने वाले), शम्भू (कल्याण के उदगमस्थान), त्वष्टा (भक्तों का दुःख दूर करने अथवा जगत का संहार करने वाले), अंशुमान (किरण धारण करने वाले), हिरण्यगर्भ (ब्रह्मा), शिशिर (स्वभाव से ही सुख देने वाले), तपन (गर्मी पैदा करने वाले), अहरकर (दिनकर), रवि (सबकी स्तुति के पात्र), अग्निगर्भ (अग्नि को गर्भ में धारण करने वाले), अदितिपुत्र, शंख (आनन्दस्वरूप एवं व्यापक), शिशिरनाशन (शीत का नाश करने वाले), व्योमनाथ (आकाश के स्वामी), तमोभेदी (अन्धकार को नष्ट करने वाले), ऋग, यजुः और सामवेद के पारगामी, घनवृष्टि (घनी वृष्टि के कारण), अपां मित्र (जल को उत्पन्न करने वाले), विन्ध्यीथीप्लवंगम (आकाश में तीव्रवेग से चलने वाले), आतपी (घाम उत्पन्न करने वाले), मण्डली (किरणसमूह को धारण करने वाले), मृत्यु (मौत के कारण), पिंगल (भूरे रंग वाले), सर्वतापन (सबको ताप देने वाले), कवि (त्रिकालदर्शी), विश्व (सर्वस्वरूप), महातेजस्वी, रक्त (लाल रंगवाले), सर्वभवोदभव (सबकी उत्पत्ति के कारण), नक्षत्र, ग्रह और तारों के स्वामी, विश्वभावन (जगत की रक्षा करने वाले), तेजस्वियों में भी अति तेजस्वी तथा द्वादशात्मा (बारह स्वरूपों में अभिव्यक्त) हैं। (इन सभी नामों से प्रसिद्ध सूर्यदेव !) आपको नमस्कार है।’

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  • नमः पूर्वाय गिरये पश्चिमायाद्रये नमः।
    ज्योतिर्गणानां पतये दिनाधिपतये नमः।।16।।
    ‘पूर्वगिरी उदयाचल तथा पश्चिमगिरि अस्ताचल के रूप में आपको नमस्कार है। ज्योतिर्गणों (ग्रहों और तारों) के स्वामी तथा दिन के अधिपति आपको प्रणाम है।’
  • जयाय जयभद्राय हर्यश्वाय नमो नमः।
    नमो नमः सहस्रांशो आदित्याय नमो नमः।।17।।
    ‘आप जय स्वरूप तथा विजय और कल्याण के दाता है। आपके रथ में हरे रंग के घोड़े जुते रहते हैं। आपको बारंबार नमस्कार है। सहस्रों किरणों से सुशोभित भगवान सूर्य ! आपको बारंबार प्रणाम है। आप अदिति के पुत्र होने के कारण आदित्य नाम से प्रसिद्ध है, आपको नमस्कार है।’
  • नम उग्राय वीराय सारंगाय नमो नमः।
    नमः पद्मप्रबोधाय प्रचण्डाय नमोऽस्तु ते।।18।।
    ‘(परात्पर रूप में) आप ब्रह्मा, शिव और विष्णु के भी स्वामी हैं। सूर आपकी संज्ञा हैं, यह सूर्यमण्डल आपका ही तेज है, आप प्रकाश से परिपूर्ण हैं, सबको स्वाहा कर देने वाला अग्नि आपका ही स्वरूप है, आप रौद्ररूप धारण करने वाले हैं, आपको नमस्कार है।’
  • ब्रह्मेशानाच्युतेशाय सुरायादित्यवर्चसे ।
    भास्वते सर्वभक्षाय रौद्राय वपुषे नम: ॥19॥
    ‘(परात्पर रूप में) आप ब्रह्मा, शिव और विष्णु के भी स्वामी हैं। सूर आपकी संज्ञा हैं, यह सूर्यमण्डल आपका ही तेज है, आप प्रकाश से परिपूर्ण हैं, सबको स्वाहा कर देने वाला अग्नि आपका ही स्वरूप है, आप रौद्ररूप धारण करने वाले हैं, आपको नमस्कार है।’
  • तमोघ्नाय हिमघ्नाय शत्रुघ्नायामितात्मने।
    कृतघ्नघ्नाय देवाय ज्योतिषां पतये नमः।।20।।
    ‘आप अज्ञान और अन्धकार के नाशक, जड़ता एवं शीत के निवारक तथा शत्रु का नाश करने वाले हैं, आपका स्वरूप अप्रमेय है। आप कृतघ्नों का नाश करने वाले, सम्पूर्ण ज्योतियों के स्वामी और देवस्वरूप हैं, आपको नमस्कार है।’
  • तप्तचामीकराभाय हस्ये विश्वकर्मणे।
    नमस्तमोऽभिनिघ्नाय रुचये लोकसाक्षिणे।।21।।
    ‘आपकी प्रभा तपाये हुए सुवर्ण के समान है, आप हरि (अज्ञान का हरण करने वाले) और विश्वकर्मा (संसार की सृष्टि करने वाले) हैं, तम के नाशक, प्रकाशस्वरूप और जगत के साक्षी हैं, आपको नमस्कार है।’
  • नाशयत्येष वै भूतं तमेव सृजति प्रभुः।
    पायत्येष तपत्येष वर्षत्येष गभस्तिभिः।।22।।
    ‘रघुनन्दन ! ये भगवान सूर्य ही सम्पूर्ण भूतों का संहार, सृष्टि और पालन करते हैं। ये ही अपनी किरणों से गर्मी पहुँचाते और वर्षा करते हैं।’
  • एष सुप्तेषु जागर्ति भूतेषु परिनिष्ठितः।
    एष चैवाग्निहोत्रं च फलं चैवाग्निहोत्रिणाम्।।23।।
    ‘ये सब भूतों में अन्तर्यामीरूप से स्थित होकर उनके सो जाने पर भी जागते रहते हैं। ये ही अग्निहोत्र तथा अग्निहोत्री पुरुषों को मिलने वाले फल हैं।’
  • देवाश्च क्रतवश्चैव क्रतूनां फलमेव च।
    यानि कृत्यानि लोकेषु सर्वेषु परमप्रभुः।।24।।
    ‘(यज्ञ में भाग ग्रहण करने वाले) देवता, यज्ञ और यज्ञों के फल भी ये ही हैं। सम्पूर्ण लोकों में जितनी क्रियाएँ होती हैं, उन सबका फल देने में ये ही पूर्ण समर्थ हैं।’
  • एनमापत्सु कृच्छ्रेषु कान्तारेषु भयेषु च।
    कीर्तयन् पुरुषः कश्चिन्नावसीदति राघव।।25।।
    ‘राघव ! विपत्ति में, कष्ट में, दुर्गम मार्ग में तथा और किसी भय के अवसर पर जो कोई पुरुष इन सूर्यदेव का कीर्तन करता है, उसे दुःख नहीं भोगना पड़ता।’
  • पूजयस्वैनमेकाग्रो देवदेवं जगत्पतिम्।
    एतत् त्रिगुणितं जप्तवा युद्धेषु विजयिष्ति।।26।।
    ‘इसलिए तुम एकाग्रचित होकर इन देवाधिदेव जगदीश्वर की पूजा करो। इस आदित्य हृदय का तीन बार जप करने से तुम युद्ध में विजय पाओगे।’
  • अस्मिन् क्षणे महाबाहो रावणं त्वं जहिष्यसि।
    एवमुक्त्वा ततोऽगस्त्यो जगाम स यथागतम्।।27।।
    ‘महाबाहो ! तुम इसी क्षण रावण का वध कर सकोगे।’ यह कहकर अगस्त्य जी जैसे आये थे, उसी प्रकार चले गये।
  • एतच्छ्रुत्वा महातेजा, नष्टशोकोऽभवत् तदा।
    धारयामास सुप्रीतो राघवः प्रयतात्मवान्।।28।।
    आदित्यं प्रेक्ष्य जप्त्वेदं परं हर्षमवाप्तवान्।
    त्रिराचम्य शुचिर्भूत्वा धनुरादाय वीर्यवान्।।29।।
    रावणं प्रेक्ष्य हृष्टात्मा जयार्थे समुपागमत्।
    सर्वयत्नेन महता वृतस्तस्य वधेऽभवत्।।30।।
    उनका उपदेश सुनकर महातेजस्वी श्रीरामचन्द्रजी का शोक दूर हो गया। उन्होंने प्रसन्न होकर शुद्धचित्त से आदित्यहृदय को धारण किया और तीन बार आचमन करके शुद्ध हो भगवान सूर्य की ओर देखते हुए इसका तीन बार जप किया। इससे उन्हें बड़ा हर्ष हुआ। फिर परम पराक्रमी रघुनाथजी ने धनुष उठाकर रावण की ओर देखा और उत्साहपूर्वक विजय पाने के लिए वे आगे बढ़े। उन्होंने पूरा प्रयत्न करके रावण के वध का निश्चय किया।
  • अथ रविरवदन्निरीक्ष्य रामं मुदितनाः परमं प्रहृष्यमाणः।
    निशिचरपतिसंक्षयं विदित्वा सुरगणमध्यगतो वचस्त्वरेति।।31।।
    उस समय देवताओं के मध्य में खड़े हुए भगवान सूर्य ने प्रसन्न होकर श्रीरामचन्द्रजी की ओर देखा और निशाचराज रावण के विनाश का समय निकट जानकर हर्षपूर्वक कहा ‘रघुनन्दन ! अब जल्दी करो’।
    ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ
    इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्ये युद्धकाण्डे पंचाधिकशततमः सर्गः।
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